New Delhi: हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्में कैप्टन विक्रम बत्रा(Vikram Batra), कारगिल यु’द्ध के नायक के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने कश्मीर में सबसे क’ठिन यु’द्ध अभियानों में से एक का नेतृत्व किया. यह भारतीय सेना के लिए सबसे कठिन अभियानों में से एक था क्योंकि पाकिस्तानी सेना 16,000 फीट की ऊंचाई पर चोटी पर बैठी थी और चढ़ाई 80 डिग्री था..कारगिल युद्ध में उन्होंने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया.
बहादुरी के कारण दु’श्मन भी उन्हें शेरशाह के नाम से जानते थे.विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल यु’द्ध में देश के लिए शही’द हो गए थे.. विक्रम की श’हादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है.. इन जवानों की कहानियां आज भी सुनकर रगो में जोश आ जाता है.
20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 चोटी से दु’श्मनों को ख’देड़’ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गो’लीबा’री के बाद मिशन में कामयाब हो गए.. इसके बाद उन्होंने जीत का कोड बोला- ये दिल मांगे मोर.
बतरा खुद गं’भी’र रूप से घा’यल भी हुए लेकिन आखिरकार लंबी गोली’बारी के बाद टॉप पर अपना कब्जा कर लिया.. 4875 प्वांइट पर कब्जे के दौरान भी बत्रा ने बेहद बहादुरी दिखाई और इस परमवीर ने सैनिक को यह कहकर पीछे कर दिया कि ‘तू बाल-बच्चेदार है, पीछे हट जा’..खुद आगे आकर बत्रा ने दुश्मनों की गोलियां खाईं। उनके आखिरी शब्द थे ‘जय माता दी’.