New Delhi: 15 दिसंबर, 1971 को जब पाकिस्तानी सेना भारत की ओर मार्च कर रही थी, तो उन्होंने Basanter नदी पर अच्छी पकड़ बना ली थी, भारतीय सेना Basanter नदी के पार से पुल बनाने की योजना बना रही थी..
इस नियंत्रण की स्थापना की जिम्मेदारी 47 वीं पैदल सेना ब्रिगेड पर निहित है.. 47 वें इन्फैंट्री के दूसरे लेफ्टिनेंट, 21 अरुण खेतरपाल के युवा अधिकारी देश के लिए बलिदान देने के लिए तैयार थे….
6 महीने की सेवा में शेष रहने के बाद, 16 दिसंबर 1971 का दिन आ गया, Basanter नदी पर अपना कब्जा जमाने के लिए, भारतीय सेना अपने टैंकों के साथ तैयार थी, तभी दूसरे लेफ्टिनेंट अरुण खेतपाल ने देखा कि पाकिस्तान की सेना के 14 टैंक आगे की दिशा से आ रहे हैं ..
अरुण खेतरपाल ने 5 टैंकों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया, बुरी तरह से घाय’ल उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें वापस जाने का आदेश दिया, लेकिन खेतपाल ने मना कर दिया, उन्होंने यथासंभव कई टैंकों को न’ष्ट करने की ठानी… कमांडिंग ऑफिसर ने उसे फिर से लौटने का आदेश दिया, जिसमें उसने जवाब दिया, नहीं, SIR… I WILL NOT ABANDON MY TANK…
अरुण खेतरपाल ने 2 और टैंकों को सफलतापूर्वक न’ष्ट कर दिया और कुर्बान हो गए. हमारी भारत सरकार ने परमवीर चक्र उनके नाम पर घोषित किया.. हमारा भारत सिर्फ इसलिए महान बन गया है क्योंकि इसने अरुण खेतरपाल जैसे महान पुत्रों को जन्म दिया है… लेकिन इसमें एक विडंबना यह है कि हम भारतीय क्या कर रहे हैं, अपना समय टंडव जैसी श्रृंखला को देखने में व्यर्थ कर रहे हैं..