
‘हम तो बहू नहीं बल्कि बेटी बनाकर ले जा रहे है’, ये कहने वाले लोग जरा यहां ध्यान दें… क्या वाकई आप बहू को अपनी बेटी मानते हैं ?, ये सवाल इसलिए, क्योंकि आपके घर में बहू के सिर पर पल्ला आज भी है। जो साफ बताता है कि आपने उसे अपनी बेटी माना ही नहीं है। अगर मानते तो उसके सिर पर पल्लू ना होता। शादी के बाद एक लड़की अपने सास-ससुर को अपनी माता-पिता मानने की पूरी कोशिश करती है, लेकिन सास-ससुर का रिश्ता होने का एहसास हर दम उसे ये सिर पर रखा पल्लू दिलाता रहता है।
पहले ये समझ लेते है कि सिर पर पल्लू रखने के क्या मायने है। सिर पर पल्लू रखने को हमारे समाज में दूसरों को इज्जत दे ने से जोड़ा गया है। अगर महिला के सिर पर पल्लू है, तो उसे समाज संस्कारी, सभ्य और चरित्रवान महिला का सर्टिफिकेट देता है। वहीं वो सिर से पल्ला हटा ले तो समाज उसे तिरछी नजरों से देखने लगता है। अब सवाल ये है कि क्या वाकई पल्लू ही लड़की के चरित्र और संस्कार को परिभाषित करता है ?, अगर आपका जवाब ‘हां’ है तो हम आपको बता दें कि हमने उन महिलाओं को भी देखा है, जो पल्लू के अंदर अपने ससुराल वालों को कोसती रहती है और बिना पल्लू की महिलाओं को परिवार के साथ हंसी बांटते हुए भी देखा है।
अगर सिर ढकने से ही चरित्र और संस्कार नजर आते है, तो फिर समाज पुरुषों को भी सिर ढकने के लिए कहे, क्योंकि जिस तरह पुरुष चाहता है कि उसे संस्कारी लड़की मिले, तो उसी तरह एक लड़की भी चाहती है कि उसे एक संस्कारी लड़का मिले और इन संस्कारों का अंदाजा समाज सिर ढकने से ही लगाते है। जिस तरह भगवान के सामने पुरुष और महिला दोनों ही सिर ढकते है। महिला जहां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू के जरिए मंदिर में सिर ढकती है, तो वहीं पुरुष रुमाल के जरिए भगवान के सामने सिर ढकते है। जब भगवान ने ही पुरुष और महिलाओं को समान नजरिए से देखा है, तो ये समाज कौन होता है, जो महिलाओं के लिए नियम तय करते है। जरा इस बात पर सोचिएगा…..