New Delhi: वर्दी का रौब और खौफ दोनों एकसाथ चलता है. आज हम आपको एक ऐसे ही IPS ऑफिसर से मिलवाने वाले हैं, जो बिहार के डीजीपी रह चुके हैं, और दिनों खासा चर्चा में हैं. आखिर क्या वजह रही जिससे वह आईपीएस रहे.
आईपीएस बनने के बाद उनके वो राज आज हम आपको बताएंगे, जिसकी वजह से वो हमेशा चर्चा में रहें. गुप्तेश्वर पांडे की बात करने से हम आपको बताते हैं कि वो अपने घर में नित्य आहूति करते हैं. बारिश हो या फिर ओले गिरे लेकिन उनके घर में अग्नि प्रज्वलित रहती है.
गुप्तेश्वर पांडे का जन्म बक्सर जिला के एक छोटे से गांव गेरुआ में 1961 में हुआ था. इस गांव के बच्चे मूलभूत सुविधाओं से वंचित थे, उन्हें स्कूल जाने के लिए नदी, नाला पार करना पड़ता था. दूसरे गांव में भी स्कूल में मूलभूत सुविधाओं का अभाव था. कोई बेंच, डेस्क कुर्सी नहीं थी. गुरुजी के बैठने के लिए चारपाई थी. स्टूडेंट के लिए बोरा या जूट की टाट रखी होती थी. पढ़ाई का माध्यम भी ठेठ भोजपुरी होता था.
ऐसे माहौल से गुप्तेश्वर पांड की जीवन यात्रा की शुरूआत हुई. सुविधाय विहिन परिवार समाज और गांव से होने के बावजूद उनके दिल में कुछ बड़ा करने का जज्बा था. और यही कारण रहा कि तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी पुलिस के शीर्ष पद की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई.
12वीं में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के पश्चात उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में नामांकन करवाया. और अपनी मेहनत, परिश्रम और दृढ़ संकल्प से बिना किसी कोचिंग के स्वध्याय के बल पर 1986 में आईआरएस बने. संचुष्ट नहीं हुए तो दोबारा परीक्षा दिए. और दोबा परीक्षा देकर आईपीएस बन गए. बिहार में सेवा का मौका मिला.
31 साल की उम्र में बिहार में वह ASP, SP, SSP, DIG, IG, DGP के रूप में बिहार में 26 जिलों में काम कर चुके हैं. उन्होंने बुगुसराय और सहानाबाद जिले को अपराध मुक्त किया था. बिहार सरकार ने 1987 बैच के गुप्तेश्वर पांडे को बिहार का DGP बनाया था.. बिहार में वह तेज तर्रार पुलिस वाले के नाम से पहचाने जाते हैं.